बात 1922 की है उन दिनों अंग्रेजों का शासन था भारत देश अंग्रेजों का गुलाम था अंग्रेज भारत वासियों पर बहुत अत्याचार करते थे भारत के लोगों को बहुत डरा धमका कर रखते थे पर उनकी धमकियों के खिलाफ लड़ने की हिम्मत रखने वाले भी लोग थे ऐसे ही लोग थे आंध्र के कोया आदिवासी और उनके नेता का नाम था अल्लूरी सीताराम राजू!
आंध्र के घने जंगलों के बीच रहने वाले को या आदिवासी सीधी-सादी खेती के माध्यम से अपनी रोजी-रोटी जुटाया करते थे पर जब से अंग्रेजों ने उनके बीच आकर अपना हक जमाया उनका जीवन मुश्किल हो गया अंग्रेजों की योजना थी कि घने जंगल और पहाड़ों को काटकर चीरती हुई एक सड़क बिछाई जाए और सड़क के निर्माण कार्य के लिए वहां से खोया आदिवासियों को पहले हटाना था इसीलिए उन्होंने तहसीलदार को आदिवासी लोगों को वहां से निकालने की जिम्मेदारी और उनको मजदूर बनाकर उनसे वहां के पेड़ कटवाने और वहां के पत्रों को हटाने का कार्य सौंप दिया बेस्तियन वहां के तहसीलदार थे जोकि बहुत क्रूर और घमंडी अकड़ स्वभाव के थे उन्होंने खोया आदिवासियों को धमकी दी कि सीधे-सीधे या तो यहां से निकलो और सड़क बनाने के लिए मदद करो यहां के पत्थरों को और पेड़ों को काटकर सुंदर सड़क बनाई जाएगी उस कार्य में मदद करो कोई आदिवासी इन सब बातों को सुनकर बहुत परेशान हुए और सोच में पड़ गए कि अब हमारा क्या होगा !
उन्हीं दिनों एक साधु उन्हीं जंगलों में आकर रहने लगा था उस साधु का नाम था अल्लूरी सीताराम राजू सीताराम राजू ने हाई स्कूल की पढ़ाई की थी उसके बाद अगली पढ़ाई छोड़कर 18 वर्ष की उम्र में ही वह साधु बन गए जब वह उन जंगलों में रहने आए तो आदिवासी लोगों से अच्छी तरह घुल मिल गए लोगों ने उनसे अपने दुख दर्द की कहानियां सुनाई और उनसे पूछा कि किस तरह से इस समस्या से निपटा जाए और किस तरह से इन जंगलों को सुरक्षित रखा जाए इन्हीं जंगलों में हमारा जीवन है वरना हम देवघर तो हो ही जाएंगे और यह अंग्रेज लोग हमें जीवित भी नहीं छोड़ेंगे
सीताराम राजू ने आदिवासियों की बात सुनकर आदिवासियों को हिम्मत जुटाई सीताराम राजू ने उन्हें यह भी बताया कि देश में और भी लोग अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ लड़ रहे हैं आप भी उसी तरह से इनके खिलाफ लड़ो हम सब एक साथ हैं हम सब मिलकर अन्याय का सामना करेंगे और जंगलों को भी फटने से बचाएंगे सब ने मिलकर अल्लूरी सीताराम राजू की बात मानी और अपने वाले तीर कमान सब तैयार कर लिए जैसे ही अंग्रेजों की सेना वहां से निकलती थी गोया आदिवासी उन पर हमला कर देते थे लेकिन सीताराम राजू ने एक बात कोई आदिवासियों से कही थी कि ध्यान रहे एक भी भारतवासी को हानि नहीं पहुंचने चाहिए इस बात का विशेष ध्यान रखोगे कोय आदिवासियों ने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि एक भी भारतवासी को नुकसान ना पहुंचे
सीताराम राजू ने उन सब आदिवासियों में ऐसी हिम्मत जोश और उत्साह भर दिया था कि वह उस समय भी उन अंग्रेजों से डटकर मुकाबला करने को हमेशा तैयार रहते थे 2 साल तक लगातार इसी तरह से उन्होंने अंग्रेजों का मुकाबला किया
लेकिन एक दिन कोया आदिवासी के कुछ लोग अंग्रेजों के हाथ लग गए तब सीताराम राजू को बहुत दुख हुआ उन्होंने उनको बचाने के लिए खुद को अंग्रेजों के हाथों सौंप दिया और उन्होंने न्याय की मांग की कि इनको इनके जंगलों से ना निकाला जाए इन पर अत्याचार ना किया जाए लेकिन अंग्रेज लोग बहुत झूठे और मक्कार थे उन्होंने उनकी एक न सुनी और उनको वहीं पर गोली मार दी तब से अब तक को या आदिवासियों को विशेष सुरक्षा दी जाती है सीताराम राजू का यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया उन्होंने आदिवासियों के लिए खुद को शहीद कर दिया यह कहानी जंगलों में रहने वाले कोई आदिवासी और अल्लूरी सीताराम राजू की है जो बहुत ही मार्मिक और हृदय को छूने वाली है जिसमें जंगलों के बचाव के लिए और कोई आदिवासियों को सुरक्षित रखने के लिए सीताराम राजू ने त्याग किया है वह हमेशा के लिए याद किया जाएगा
इसलिए अपने देश के इतिहास में को आदिवासियों ने अन्याय के खिलाफ लड़ने की मिसाल स्थापित की

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