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एम एस स्वामीनाथन का जन्मदिन 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु राज्य के कुम्भकोणम ग्राम में हुआ था।इनके पिताजी पेशे से सर्जन थे। बहुत कम ही समय में इनके पिता का साया इनके ऊपर से उठ गया था। उस वक्त इनके जीवन में एक भयंकर तूफान खड़ा हो गया। लेकिन धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया।
अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई स्वामीनाथन जी ने गांव के ही विद्यालय से शुरुआत की। फिर त्रावणकोर विश्विद्यालय से बीएससी की डिग्री हासिल किया। पुनः उन्होंने बीएससी एग्रीकल्चर से किया यानी दो बार बीएससी किया।
उनका चयन आईपीएस में भी हुआ, लेकिन उनका जुड़ाव खेती ,किसानी,पेड़ पौधों में अधिक मन रमता था। वो सोचा करते थे कि मैं कृषि के क्षेत्र में ही कुछ अच्छा करके इस देश का सेवा कर सकूं। उन्होंने देश के अलग अलग कृषि संस्थानों में अपनी सेवा दी। फिर आलू के शोध परउन्होंने पीएचडी की डिग्री हासिल की।
एक बार सन 1966 में उन्हें गेहूं की पैदावार में उनका मेक्सिको जाना हुआ। वहा जाकर एक उन्नत किस्म के बीजों को पंजाब के गेहूं एवं धान के किस्मों पर उपयोग किया,फिर लगभग 25 साल में भारत खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने लगा। उसी को हमलोग हरित क्रांति कहते हैं। एक समय था जब हमलोग खाद्य पदार्थ के मामलों में अमेरिका जैसे देशों को टकटकी लगाए देखते थे। अब भारत खुद आत्मनिर्भर बन चुका है। इसके पीछे एक ही महान व्यक्ति थे,वह थे प्रो एम एस स्वामीनाथन उन्होंने भारतीय किसान को जीने की राह दिखाई।
आज फिर उनको देश मजदूर वर्ग, किसान वर्ग याद कर रहा है।
किसानों की स्थिति हमेशा दयनीय ही रहा है। ये वर्ग कभी भी यह नहीं कहते कि खेती में मेरी आय में बढ़ोतरी हो गई है। इनको खेती की लागत तक ऊपर नहीं होती। खेती घाटा का सौदा बन गया है। कोरोना जैसे महामारी के समय में कृषि ही ऐसा सेक्टर है जो जीडीपी को बचाये रखने में मददगार साबित हुई है। हमारे किसान देश के अन्नदाता,देश की रीढ़ हैं ये लोग। आज भी 50% लोग डायरेक्ट इस पेशे से जुड़े हैं। उनका धंधा पानी यही है।उनके उगाये हुए अनाजो से हम पिज्जा, बर्गर, बिस्किट, रोटी चावल खाते हैं।इस महामारी में मैंने अच्छे अच्छे बिजनेस मैन को देखा सब रो रहे थें। उनका कहना था कि कोरोना महामारी ने उनकी कमर तोड़कर रख दी है। जरा सोचिए चिंतन कीजिए किसान इस देश में हर साल घाटे की सौदा करता है, हर वर्ष आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाता है, जरा सा भी उफ तक नहीं करता। फिर भी आजादी से लेकर अब तक हर सरकार केवल ठगने का काम किया है। आखिर क्यों उसका इतना ही गलती है कि वह किसान है। क्या आपने सोचा किसान की मासिक आय औसत कितना है। सोचकर देखियेगा।
एक शिक्षक नीतीश सरकार में बहाली 1500 सौ रुपये से हुआ, आज उसकी सैलरी कितनी है। (शिक्षक मित्र क्षमा) कितनी प्रतिशत बड़ी है उनकी आय। विधायक, संसद की आय कितनी प्रतिशत बढ़ी है, और तुलना कीजिए किसानों की आय से। क्या किसान सिर्फ मरने के लिए बने हैं। किसान इस समाज का हिस्सा हैं या नहीं। क्या आप नहीं चाहते किसान का बच्चा भी अच्छे स्कूलों में पढ़े, लिखे,उच्च शिक्षा पाएं।
सरकारी मुलाजिम TA, DA 7वा वेतन का राशि का लाभ लेते हैं, मेडिकल लेते हैं, किसान जो सबका पेट भरता है तो उसका मेडिकल की चिंता कौन करेगा। सोचियेगा जरा!
इन्हीं सभी प्रमुख कारणों के वजह से संभवतः अटल जी के समय 2004 में एम एस स्वामीनाथन जी के नेतृत्व में भारतीय किसान आयोग के गठन के लिए रिपोर्ट तैयार करने कु जिम्मेवारी मिली,और वह 4 खण्डों में रिपोर्ट को भारत सरकार को सौंप दिए।
उनके रिपोर्ट की मुख्य चीजें थी..
1. भूमि सुधार के लिए.. जिनके पास 100 एकड़ 500 एकड़, 1000 एकड़ भूमि है, उनको बिहार जैसा राज्य में तय किया गया कि 18 एकड़ जमीन, रखकर बाकी भूमिहीन किसानों में बांट दिया जाय और भी बेकार के पड़े जमीन को आदिवासी समुदाय के लिए देने की बात कही गई है।
2.सिंचाई के लिए..
सभी के खेतों में सही मात्रा में पानी मिले इसके लेकिन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम,वाटर शेड परियोजना इत्यादि की व्यवस्था वर्णित है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पंचवर्षीय योजना में ज्यादा राशि की बात वर्णित है।
3.फसली बीमा के लिए
इसमें फसलों के बीमा के लिए गांवों में बैंक खोलने से लेकर मात्र 4 प्रतिशत पर ऋण देने की बात वर्णित है। किसान जब तक ऋण देने योग्य नहीं हो जाता तब तक उससे राशि न वसूली की जाय। प्राकृतिक आपदाओं से बचाव कार्य हेतु कृषि राहत फंड का निर्माण कार्य।
4.उत्पादकता बढ़ाने के लिए
भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ढांचागत विकास की रिपोर्ट की चर्चा है। मिट्टी की जांच एवं प्रयोगशाला की बड़ी नेटवर्क तैयार करना। मिट्टी से जुड़ी पोषण को सुधारा प्रक्रिया। सड़क के जरिये जुड़ने के लिए सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने पर जोड़ दिया जाय।
5.खाद्य सुरक्षा के लिए
प्रति व्यक्ति भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की बल देनाकम्युनिटी फूड व वाटर बैंक बनाने व राष्ट्रीय भोजन गारंटी कानून की संस्तुति भी रिपोर्ट में है। इसके साथ ही वैश्विक सार्वजनिक वितरण प्रणाली बनाई जाए। जिसके लिए जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 1% हिस्से की जरूरत होगी। महिला स्वयंसेवी ग्रुप्स की मदद से ‘सामुदायिक खाना और पानी बैंक’ स्थापित करने होंगे, जिनसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को खाना मिल सके। कुपोषण को दूर करने के लिए इसके अंतर्गत प्रयास किए जाएं।
6.अब आते हैं असली समस्या पर.
किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए..
(msp) न्यूनतम समर्थन मूल्य को समझते हैं..
इसको तीन खण्ड में समझना होगा।
पहला- A2, दूसरा-A2+FL, तीसरा-C2
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चलिए आइये पहला -A2 को समझते हैं।
जैसे मान लीजिए कोई एक छोटे किसान अपने खेतों में फसल बोता है,तो उसे खाद, बीज,कीटनाशक,डीजल की आवश्यकता पड़ता है। इसमें जो मूल्य निकाला जाता है, उसे उत्पादन मूल्य यानी प्रोडक्शन प्राइस कहा जाता है।
जैसे मान लिया जाय।
1.खाद- 500
2.बीज-1000
3.कीटनाशक-500
4.डीजल-1000
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टोटल-₹ 3000
फिर आते हैं A2+FL
इमसें जोड़ दीजिये लागत मूल्य -3000+ फैमिली लेबर कॉस्ट, मतलब जन मजदूरी-2000।
टोटल हो गया। 3000+2000=₹5000
अब आइये तीसरा- C2
इसमें आप जोड़ लीजिए लागत मूल्य-₹3000+फैमिली लेबर मूल्य-₹2000 और कृषि के लिए गए ऋण के पैसे, उदाहरण- ₹1000। टोटल -₹6000
C2 के राशि और 50% राशि जोड़कर जो राशि होता है उसे ही न्यूनतम समर्थन मूल्य कहा जाता है,और इसी के मारामारी हो रहा है। सरकार c2 लागत मूल्य और 50% जोड़कर यही किसानों की मांग है।
बस यही चीज सिर्फ सरकार कानून बना दे और इस पर कड़ा कानून बने इसका उल्लंघन करने वालों को जेल की सजा सुनाई जाय, ताकि वो जीवन में कभी भी इस तरह से गरीब किसानो के साथ न धोखाधड़ी न कर पाएं।
प्रीतम महतो
प्रमुख छत्रपति शिवाजी सामाजिक संगठन बिहार प्रदेश।