
दिल्ली आकर पहली बार जहाँ रहना हुआ वह घर राजेंद्र प्रसाद रोड पर होटल ला मेरिडियन के ठीक पीछे है। ज़्यादा विवरण नहीं दे सकूँगी, मेरे पहले लोकल गार्डियन कौन थे और मैं कहाँ रही ये मेरे कॉलेज के मित्र व क़रीबी जानते हैं।
हम हर रोज़ इण्डिया गेट वॉक पर जाते। बाकी लोग ख़ूब तैयार होकर पहुँचते थे, मेले और पिकनिक जैसा माहौल होता लेकिन हमलोग टी-शर्ट और लोवर्स में ही चले जाते।

जब पहली बार इण्डिया गेट पहुँची थी तो खड़ी होकर एकटक देखती रह गयी थी। वह विशाल द्वार जिसके बारे में अबतक सिर्फ़ पढ़ा था और तस्वीरें ही देखी थीं, मेरे सामने था। एक लौ जल रही थी जिसे अमर जवान ज्योति कहते हैं। मैं वहीं अवाक् खड़ी रह गयी, आँखों में आँसू थे। घरवालों ने समझाया और फिर हम टहलने लगे।
उसके बाद कई बार इण्डिया गेट जाना हुआ, जितनी बार अमर जवान ज्योति के सामने जाती, वही स्थिति होती। जो दोस्त साथ में होते वो मुझे स्थिर देखकर बातें करते – अभी डिस्टर्ब न कर, थोड़ी देर रहने दे। फिर कुछ देर बाद उनमें से कोई आता और कहता – चलते हैं रीवा, let’s go for ice-cream.

आप कहकर पल्ला झाड़ लें कि इण्डिया गेट अंग्रेज़ों ने बनवाया था। मेरे लिये भारत में जो कुछ भी है, जो भी है, वह हमारा है। अंग्रेज़ों व मुग़लों ने तो बहुत कुछ बनवाया। राष्ट्रपति भवन से लेकर पूरा लुट्यंस ज़ोन ही सर एडविन लुट्यंस की देन है, तो क्या करें? उखाड़कर फेंक दें अपनी सरज़मीं से?
अमर जवान ज्योति जलाने का फैसला सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद हुआ। वह युद्ध जिसमें हमने विजय प्राप्त किया लेकिन गँवाये थे अपने 3,843 जवान। भारतीय सेना के जवानों की शहादत की स्मृति में अमर जवान ज्योति जलायी गयी। साथ ही उस काले रंग के स्मारक पर L1A1 सेल्फ़ लोडिंग राइफ़ल रखी गयी, जिसपर सैनिक हेलमेट लगाया गया। वह ज्योति जो 1972 से आज तक जल रही थी, अब नहीं जलेगी।
विवेकशील लोग कहते हैं कि उस ज्योति का विलय हो गया उस ज्योति में जो नेशनल वॉर मेमोरियल में जल रही है। सो ज्योति बुझी नहीं है, समाहित हुई है। मुझे सिर्फ़ इतना समझ आ रहा है कि इण्डिया गेट पर अमर जवान ज्योति अब नहीं है। चाहें उसका विलय हुआ हो या उसकी रोशनी से भारतवर्ष के हर घर में आग पहुँचायी गयी हो, लेकिन वह ज्योति जो पाँच दशकों से जल रही थी, जिसे देखकर सिर झुक जाता था, आँखें भर उठती थीं, मन गौरवांवित हो उठता था, मुट्ठियाँ भींच ली जाती थीं, अब नहीं है।
उसे देखते हुए, नमन करते हुए पीढ़ियाँ बड़ी हुईं, देश बड़ा हुआ, सरकारें बदलीं, राजधानी बदली… वह ज्योति, वह अमर जवान ज्योति, देश के जवानों को समर्पित ज्योति, अब वहाँ नहीं है।
हाँ, एक ज्योति जल रही है नेशनल वॉर मेमोरियल में, वह भी सैनिकों के सम्मान में ही जल रही है। लेकिन वह नहीं है वो पुरानी अमर जवान ज्योति जिसकी व्याख्या किताबों में होती थी। जिसे देखने को दूर शहर-गाँव-कस्बे में रहने वाला कोई अबोध मन दिल्ली आते ही पहुँच जाता इण्डिया गेट।
प्रधान मंत्री महोदय, आप शौक़ से ज्योति जलायें। लेकिन आपके इस कदम की प्रशंसा इतिहास शायद ही कर सके। आपसे पहले भी सरकारें आयीं और गयीं, प्रधान मंत्री आये और गये, आपके दल के भी आये और चले गये, आप और हम भी बीत जाएंगे… देश रहेगा। सर्वदा के लिये।
मैंने कॉलेज के नोट्स, स्कूल की असाइंमेंट कॉपी तक संभाल कर रखी हुई है, पुरानी चीज़ों से लगाव हो जाता है। वे यादें हैं, धरोहर हैं, झरोखे हैं पुराने दिन का सूरज दिखाने को। आपको लगाव नहीं होता? वह अमर जवान ज्योति वहीं रहती तो क्या नुकसान करती? आप वॉर मेमोरियल पर एक और जला ही रहे थे। आप कहते तो समूचा देश ज्योति जला लेता। आपके एक बार कहने पर इस देश ने कोरोना जैसी आपदा में भी घर-घर दीये जलाये, महामारी में दीवाली मनायी। आपसे ख़ूब प्रेम किया। फिर आपने यह क्यों किया? अमर जवान ज्योति देश का धरोहर था, हमारी अस्मिता का अंश था, वहाँ सिर्फ़ ज्योति नहीं जलती थी, जुनून धधकता था। आपने वह मिटा दिया।
ठीक है बुझायी नहीं, विलय कर दिया। विलय होने के बाद एकल वाली अस्मिता नहीं रहती, भंग हो जाती है। तो आपकी परिभाषा के अनुसार भी अमर जवान ज्योति नहीं रही न।
आपको अंदाज़ा है क्या पढ़ेंगी आने वाली पीढ़ियाँ? बच्चे जब भी इण्डिया गेट आयेंगे या किताबों में निबंध पढ़ेंगे तो पढ़ेंगे कि यहाँ पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिये अमर जवान ज्योति दिन-रात जलती थी लेकिन 2022 में तत्कालीन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नेशनल वॉर मेमोरियल में उसका विलय करा दिया। तब से यहाँ कोई ज्योति नहीं जलती। फिर कोई सात-आठ वर्षीय बच्चा बला की मासूमियत से पूछेगा कि मोदी ने ऐसा क्यों किया? जलने क्यों नहीं दिया?
आप इस प्रश्न के लिये तैयार रहिएग।
Riwa s Singh लेख सूत्र FB