शासन के शिखर पर जब आसुरी ताकते बैठी हों———————————————————–

अंकिता भंडारी (11 नवंबर 2003 – 18 सितंबर 2022)

उत्तराखंड के पौड़ी जिले के गंगा-भोगपुर में स्थित वनंतारा रिसॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के रूप में कार्यरत थीं। 19 वर्षीय अंकिता की 18 सितंबर 2022 को संदिग्ध परिस्थितियों में गुमशुदगी और बाद में उनकी हत्या की खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस मामले में मुख्य आरोपी रिसॉर्ट का मालिक पुलकित आर्य हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पूर्व नेता और पूर्व राज्यमंत्री विनोद आर्य का बेटा हैं। उनके साथ दो अन्य आरोपियों, सौरभ भास्कर (रिसॉर्ट मैनेजर) और अंकित गुप्ता (सहायक प्रबंधक) को भी गिरफ्तार किया गया।18 सितंबर 2022 को अंकिता भंडारी वनंतारा रिसॉर्ट से अचानक लापता हो गईं। उनके परिवार ने उनकी गुमशुदगी की शिकायत राजस्व पुलिस चौकी उदयपुर तल्ला में दर्ज की, लेकिन शुरुआती दो दिनों तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। बाद में, 22 सितंबर को मामला लक्ष्मणझूला पुलिस को हस्तांतरित किया गया। पुलिस जांच में पता चला कि अंकिता की हत्या उसी रात ,18 सितंबर, को कर दी गई थी, और उनका शव चीला नहर में फेंक दिया गया था। 24 सितंबर को उनका शव बरामद हुआ।पुलिस के अनुसार, अंकिता पर रिसॉर्ट में “वीआईपी” अतिथि को “अतिरिक्त सेवाएं प्रदान करने का दबाव डाला जा रहा था। जब अंकिता ने इसका विरोध किया और रिसॉर्ट के काले कारनामों को उजागर करने की धमकी दी, तो मुख्य आरोपी पुलकित आर्य और उनके सहयोगियों ने उनकी हत्या कर दी। जांच में सामने आए व्हाट्सएप चैट्स और अन्य साक्ष्यों ने इस बात की पुष्टि की कि अंकिता को जबरन अनैतिक कार्यों के लिए मजबूर किया जा रहा था।पुलिस ने आखिर तीनों आरोपियों—पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर, और अंकित गुप्ता—को गिरफ्तार कर लिया। 19 दिसंबर 2022 को विशेष जांच दल (एसआईटी) ने 500 पन्नों की चार्जशीट कोटद्वार की अदालत में दाखिल की, जिसमें 97 गवाह और 30 से अधिक दस्तावेज शामिल थे। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या), 201 (साक्ष्य मिटाना), 354A (छेड़छाड़), और अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम के तहत आरोप तय किए गए।दिसंबर 2022 में यह खबर आई कि तीनों आरोपियों का नार्को टेस्ट हो सकता है, लेकिन बाद में इस पर रोक लगा दी गई, जिससे “वीआईपी” के नाम का खुलासा और जटिल हो गया।30 मई 2025 को कोटद्वार की अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने तीनों आरोपियों को आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई। हालांकि, जनता और अंकिता के परिवार ने मृत्युदंड की मांग की थी।इस मामले में सबसे विवादास्पद पहलू “वीआईपी” का रहस्य है, जिसके लिए अंकिता पर “अतिरिक्त सेवाएं” देने का दबाव बनाया गया था। कई स्रोतों और सोशल मीडिया पोस्ट्स में दावा किया गया कि इस वीआईपी का नाम अजय कुमार है, जो कथित तौर पर बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ा एक प्रभावशाली व्यक्ति है। हालांकि, पुलिस और एसआईटी ने इस दावे को निराधार बताया और कहा कि कोई ठोस सबूत नहीं मिला। अंकिता की मां सोनी देवी ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने इस वीआईपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने यमकेश्वर की बीजेपी विधायक रेनू बिष्ट और तत्कालीन उपजिलाधिकारी का नाम भी लिया, जिन्हें कथित तौर पर सबूत मिटाने में शामिल माना गया।कोटद्वार कोर्ट में एक गवाह, जेसीबी चालक दीपक, ने दावा किया कि रेनू बिष्ट और तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने रिसॉर्ट पर बुलडोजर चलाने का आदेश दिया था, जिसे सबूत मिटाने की कोशिश के रूप में देखा गया। इस दावे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।मुख्य आरोपी पुलकित आर्य के पिता विनोद आर्य, बीजेपी के पूर्व राज्यमंत्री थे, और उनके भाई, अंकित आर्य, उत्तराखंड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष थे। मामले के सामने आने के बाद दोनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। विपक्ष ने सत्तादल बीजेपी पर आरोप लगाया कि वह प्रभावशाली नेताओं को बचाने की कोशिश कर रही है।सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर व्यापक चर्चा हुई। बीजेपी पर “चरित्रहीन नेताओं” को संरक्षण देने का आरोप लगा है। अंकिता की हत्या का कारण एक “वीआईपी” को विशेष सेवाएं देने से इंकार करना था, और इस वीआईपी का नाम अभी तक उजागर नहीं हुआ है।इस मामले में बीजेपी नेताओं पर यौन लिप्सा और सत्ता के दुरुपयोग के गंभीर आरोप लगे। जांच में सामने आया कि वनंतारा रिसॉर्ट में महिलाओं के साथ मौखिक और शारीरिक दुर्व्यवहार आम था। पूर्व कर्मचारियों ने बताया कि पुलकित आर्य और अंकित गुप्ता नियमित रूप से महिलाओं को रिसॉर्ट में लाते थे और कर्मचारियों पर अनैतिक कार्यों के लिए दबाव डालते थे। अंकिता के व्हाट्सएप चैट्स में उनकी पीड़ा साफ झलकती है, जहां उन्होंने लिखा था, “इस होटल वालों ने तो मुझे रं… समझ रखा है क्या…”स्पष्ट धारणा है कि बीजेपी ने अपने प्रभावशाली नेताओं को बचाने के लिए जांच को प्रभावित किया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि हालांकि कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन “वीआईपी चेहरे अभी भी पर्दे में हैं।” उन्होंने कहा कि सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की गई और इसी कड़ी में घटना स्थल पर बुलडोजर चलवा कर उसे नष्ट कर दिया गया ताकि सबूत ना मिले।अंकिता की हत्या के बाद उत्तराखंड में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। स्थानीय लोगों ने रिसॉर्ट में तोड़फोड़ की और बीजेपी विधायक रेनू बिष्ट की गाड़ी पर हमला किया। अंकिता के परिवार ने न्याय के लिए धरने दिए, जिन्हें मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति का समर्थन प्राप्त हुआ।इस मामले ने उत्तराखंड और देश भर में महिला सुरक्षा और कार्यस्थल पर शोषण के मुद्दों को फिर से उजागर किया। यह सवाल उठा कि यदि एक प्रभावशाली नेता का बेटा इस तरह के अपराध कर सकता है, तो आम महिलाओं की सुरक्षा का क्या?पत्रकार आशुतोष नेगी, जो इस मामले को लगातार उठा रहे थे, को 2024 में गिरफ्तार कर लिया गया। अंकिता की मां ने दावा किया कि यह सरकार की ओर से सच्चाई को दबाने की कोशिश थी।सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह “वीआईपी” कौन था, जिसके लिए अंकिता पर दबाव बनाया गया? पुलिस ने इस दावे को निराधार बताया, लेकिन अंकिता की मां और सोशल मीडिया पर बार-बार अ… कुमार का नाम लिया गया।रेनू बिष्ट और अन्य अधिकारियों पर सबूत मिटाने का आरोप क्यों नहीं जांचा गया?अंकिता के परिवार को तीन साल तक इंसाफ के लिए भटकना पड़ा। क्या यह सत्ता के दबाव का नतीजा था?अंकिता भंडारी हत्याकांड केवल एक आपराधिक मामला नहीं है, बल्कि यह सत्ता, प्रभाव, और यौन शोषण जैसे गंभीर मुद्दों को उजागर करता है। हालांकि तीनों मुख्य आरोपियों को सजा हो चुकी है, लेकिन “वीआईपी” का रहस्य और कथित राजनीतिक संरक्षण के सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। यह मामला यह दर्शाता है कि कैसे सत्ता के प्रभाव से सच्चाई को दबाने की कोशिश की जाती है, और यह समाज को यह सोचने पर मजबूर करता है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए ?यह मामला कोलकाता के आरजीकर हस्पताल की ट्रेनी डॉक्टर की हत्या के मामले की हूबहू याद दिलाता है। सजा दोनों मामलों में सुनाई जा चुकी है, पर सवाल अनुत्तरित ही हैं। बेटियां अकाल मारी गयी पर निर्णय और न्याय का भेद अनसुलझा ही रहा। जहां वीआईपीज के संरक्षण में पलते बलि के बकरे सब जगहों पर उपलब्ध है, वहीं सभी जगहों पर वीआईपीज सत्ता संरक्षण का लाभ लेकर नैतिकता को रौंदते हैं ।सवाल सत्ता की ईमानदारी और निष्पक्ष प्रशासन का है। ऐसी प्रवृति पर अंतिम अंकुश लगाने का है। सभ्यता पर लगते इन चमकते काले धब्बों को कैसे मिटाया जा सकता है, कैसे रोका जा सकता है ? यह सोचना सभी स्वतंत्र चेत्ता नागरिकों की पहली जिम्मेदारी है, सत्ता के बंधुआ मजदूरों से तो नाउम्मीदी ही हासिल होनी है।नमः आंखों से असमय मार दी गयी बेटियों को श्रद्धांजलि देते हुए सब याद रखा जाना चाहिए। ऐसी घटनाओं पर रात दखल अभियान पूरे देश में हो, तब तक हों, जब तक यह दरिंदगी जड़ से खत्म ना हो जाए। जरूरी है कि पूरे देश में संगठित प्रतिवाद हो।

लेख – केशव भातर

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