
“लड़कियां अब आंकड़ों में हैं, ज़िंदा खबरों में नहीं — उत्तरप्रदेश में” बाबा का बा यूपी मा
उत्तरप्रदेश में हर दिन तीन बच्चियां लापता हो जाती हैं। कुछ लौटती हैं, कुछ कभी नहीं। पुलिस के रिकॉर्ड में ये केस “मामूली गुमशुदगी” बनकर रह जाते हैं, लेकिन जिन घरों की बेटियां गईं, वहां हर दिन एक मौत होती है — उम्मीद की।कभी मजदूर की बेटी बस स्टैंड से गायब होती है, कभी छात्रा स्कूल से लौटते वक्त। रिपोर्ट दर्ज करने में हिचकिचाहट, जांच में देरी और दोषियों पर कार्रवाई का न होना — यही वह ढांचा है जिसने अपराधियों को बेखौफ बना दिया है।प्रशासन हर बार कहता है, “जांच चल रही है।”पर सवाल यह है — कब तक चलेगी और कहां तक पहुंचेगी?मीडिया के लिए अब ऐसी खबरें “ट्रेंड” नहीं रहीं। जब तक किसी बड़ी हस्ती की बेटी शामिल न हो, कोई “ब्रेकिंग” नहीं बनती।
समाज की संवेदनाएं भी अब आंकड़ों में सिमट गई हैं — तीन बच्चियां रोज़ जाती हैं, और हम अगले दिन फिर वही आंकड़ा सुनकर चुप हो जाते हैं।
भारत में 2022 में लगभग 83,350 बच्चों को लापता बताया गया, जिनमें 62,946 लड़कियाँ थीं, 20,380 लड़के, और कुछ ट्रांसजेंडर बच्चे भी। ये संख्या 2021 की तुलना में लगभग 7.5% अधिक थी। साथ ही “Crimes against children” यानी नाबालिगों के खिलाफ अपराधों की संख्या 2023 में 1,77,335 दर्ज की गई, जो 2022 के मुकाबले लगभग 9.2% वृद्धि है। इस श्रेणी में “kidnapping and abduction” (अपहरण और अगवा करना) सबसे बड़ी श्रेणी है: लगभग 79,884 मामले, जिनमें लगभग 82,106 बच्चे-जन्मी-पीड़ित हैं।
उत्तरप्रदेश की स्थिति: विश्लेषणNCRB की रिपोर्टों में उत्तरप्रदेश के लिए कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार मिलते हैं:
1. क्राइम अगेंस्ट चिल्ड्रन की रैंक में अग्रिम स्थितिउत्तरप्रदेश “Crimes against children” की श्रेणी में देश के शीर्ष राज्यों में है।
2. POCSO अधिनियम के तहत लड़कियों की बढ़ती संख्याProtection of Children from Sexual Offences Act (POCSO) के अंतर्गत लड़कियों के शिकार बनाए जाने वाले मामले उत्तरप्रदेश में उच्च हैं। NCRB 2023 रिपोर्ट के अनुसार, POCSO अधिनियम के कई मामलों में लड़कियों की संख्या बहुत अधिक है।
3. गुमशुदा बच्चों की रिपोर्टिंग और ट्रेसिंगराष्ट्रीय स्तर पर यह देखा गया है कि बरसों से दर्ज गुमशुदा बच्चों की संख्या लाखों में है, और उनमें से बहुत-से बच्चे ट्रेस नहीं हो पाते हैं। हालांकि, उत्तरप्रदेश विशेष रूप से “ट्रेसिंग की दर” कितनी है यह सार्वजनिक रिपोर्टों में स्पष्ट नहीं दिखता।
4. मीडिया और सार्वजनिक चर्चा की कमीजहाँ NCRB डेटा से पता चलता है कि लड़कियों का अनुपात बहुत ज़्यादा है (missing children में लड़कियों का हिस्सेदारी) और मामले लगातार बढ़ रहे हैं, वहाँ आम मीडिया कवरेज प्रायः “एक-दो दुर्घटना / हाई-प्रोफ़ाइल घटना” पर सीमित रहता है। न कि इस समस्या की नियमितता, गहराई और जमीनी प्रभाव को उजागर किया जाता है।इन आंकड़ों के देख कर लगता है कि इस देश में जिस्मफरोशी और अंग प्रत्यारोपण के लिए मानव तस्करी का व्यापार सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है प्रशासन शासन सो रहा है । सरकारें सत्ता आसीन धर्म का चोला पहन संस्कारों का ढोल पीट पीट कर प्रचार कर रही है यह भी माना जाए संरक्षण दे रही रही है ऐसे जघन्य और घिनौनी आपराधिक गतिविधियों को ।#भ्रष्ट_जुमला_पार्टी #देहाती_digital_india #रेप #crime #अपराध
