
भारत में विकलांग लोगों को शिक्षा, कौशल विकास और रोज़गार में बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि वे जनसंख्या का 15% हिस्सा हैं, फिर भी उनकी रोज़गार संबंधी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 जैसी नीतियों के बावजूद—जो सरकारी नौकरियों में 3% आरक्षण प्रदान करती हैं लेकिन केवल एक छोटा सा हिस्सा ही वास्तव में रोज़गार प्राप्त कर पाता है। वर्तमान आँकड़े दर्शाते हैं कि 7 लाख से कम विकलांग व्यक्ति सार्थक रूप से रोज़गार प्राप्त कर पा रहे हैं। उपलब्ध सेवाओं के बारे में सीमित जागरूकता, समाज की विकलांग लोगों के प्रति धारणा और कमज़ोर नीतियाँ उनके अवसरों को और सीमित कर देती हैं।

नौकरी करना सभी व्यक्तियों के लिए अपनी पहचान, स्वतंत्रता और जीवन की गुणवत्ता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। फिर भी, विकासशील देशों में, 80-90% कामकाजी उम्र के विकलांग युवा रोज़गार से वंचित हैं। परिवार में भागीदारी महत्वपूर्ण है; सही जानकारी और समर्थन के साथ, माता-पिता अपने बच्चों के लिए सशक्त जीवन की राह चुन सकते है |
लतिका, विकलांग लोगों में नौकरी करने की क्षमता को बढाने में परिवारों की मदद करने की अहम भूमिका निभाती हैं। लतिका का व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम–लतिका ट्रेनिंग, विकलांग युवाओं को समग्र रूप से रोज़गार कौशल का प्रशिक्षण देता है। परियोजना प्रमुख प्रेम कुमार सिंह प्रत्येक ट्रेनी की खूबियों और रुचियों की पहचान करने के लिए परिवारों के साथ मिलकर काम करते हैं | लतिका की विशेषज्ञों की टीम परिवारों के साथ मिलकर अपने ट्रेनीज को प्रशिक्षण देते है और रोज़गार के अवसर ढूँढ़ने के लिए काम करते हैं।
व्यावसायिक शिक्षक, निर्मला रावत और विपुल त्रिपाठी हर ट्रेनी के कौशल के अनुसार उनको प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। वे ट्रेनीज की खूबियों और क्षमताओं का आकलन करते हैं और प्रत्येक ट्रेनी के लिए उपयुक्त नौकरी के अनुसार प्रशिक्षण की योजना बनाते हैं। भौतिक चिकित्सक, अंजू खन्ना और नीरज ठाकरे थेरेपी को दैनिक कार्यों में शामिल करके ट्रेनीज को उनके कार्य करने की जगह के अनुरूप तैयार करते हैं। प्लेसमेंट अधिकारी, हेमा थापा नियोक्ताओं और समुदाय के साथ जुड़कर उन्हें विकलांगता के बारे में एक अलग दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। वह ट्रेनीज और जहाँ ट्रेनी को इंटर्नशिप के लिए रखा जाता है, उन्हें एक साल तक सहयोग देती हैं | इससे नौकरी प्रदान करने वालों को यह समझने में भी मदद मिलती है कि बस जरा सी सहायता से विकलांग लोग भी बाकि लोगों की तरह सभी कार्यों को करने में सक्षम हो सकते है।
समावेशन को बढ़ावा देकर और दृष्टिकोण बदलकर, लतिका एक खुले, सहयोगी और प्रगतिशील समुदाय के निर्माण में मदद करती है—छोटे छोटे कदम, एक सक्षम भविष्य की ओर

Article by Dr. Aarti PHD
