आत्माराम त्रिपाठी के साथ सन्तोष कुमार सोनी की रिपोर्ट—


बांदा–आज हम और आप तथा हमारे समाज के सभी लोग प्रकृति की मार से पीड़ित है कभी अतिवृष्टि से तो कभी सूखा कभी अधिक ठंड तो कभी अधिक गर्मी यानिकी प्रकृति वर्तमान में इस सारे समाज से रुष्ट है और उसके जिम्मेदार आज का आमजनमानस सभ्य समाज ही है जिसने मात्र अपने निजी स्वार्थ के चलते सरेआम प्रकृति से छेड़छाड़ कर उसके संतुलन के साथ खिलवाड़ कर प्रकृति की चाल को ही बदल दिया जी हाँ कहीं विकास के नाम पर पर्वतों के पत्थरों की तुडाई कर उसके अस्तित्व को ही समाप्त कर रहे हैं तथा उसके ऊपर लगे हरे बृक्षों का कटान कर उसकी हरियाली को ही महज निहित स्वार्थ में सुरसा की तरह नष्ट कर रहे हैं ! यहीं नहीं इन्ही जंगलों मे अबैध तरीके से हो रहे हरे बृक्षों के कटान होना, नदियों का सीना छलनी कर अबैध तरीके से मोरम निकालना क्या यह सब कुदरत की अमूल्य धरोहर को नष्ट कर धरती माँ का संतुलन को बिगाडना नहीं तो और क्या है?


हमने पूर्वजों से सुना था कि पहले समझदार परोपकारी महापुरुषों द्वारा जनहित में मुख्य मार्गो में फलदार बृक्षों को लगाया जाता था मार्ग के किनारे कुआँ बावलियों का निर्माण कराया जाता रहा जिनमें फलदार एवं उपयोगी बृक्ष जैसे आम, पीपल, जामुन, नीम तथा बरगद के बृक्षों को प्रथमिकता के साथ लगाया जाता था ताकि जिससे पथिक को भरपूर छाया मिल भी सके साथ में प्यास लगने पर जल भी
किन्तु आज आधुनिकता की दौड़ में पीपल, बरगद, नीम, आम, अमरूद महुआ की जगह लोग अधिक कमाई के चक्कर में हर जगह विदेशी यूकेलिप्टस को बहुतायत में लगाना प्रारंभ कर दिया जिसका स्वभाव ही जमीन को जल विहीन कर देना है
अब जब वायु मण्डल में रिफ्रेशर ही नहीं रहेगा तो गर्मी तो बढे़गी, असमय बरसात भी होगीऔर जब गर्मी बढेगी तो जल वाष्पीकृत होकर भाप बनकर उडे़गा ही सिर्फ इसीलिए लोग पीपल का बृक्ष लगाते थे क्योंकि इसमें कार्बन डाइऑक्साइड का 100%एबजार्वर है बरगद 80%और नीम 75% है।
बताते हैं पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है जिसकी वजह से शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और अपने इस कार्यशैली के चलते वातावरण को स्वच्छ आक्सीजन देते रहते हैं। वैसे हिंदू धर्म मे पीपल के बृक्ष को पूज्यनीय माना गया है मूलम ब्रह्मा त्वचा विष्णु सखा शंकरमेवच पत्रे पत्रेका सर्वदेवानाम वृच्छराज नमस्तुते
जबकि इन बृक्षों के सम्बन्ध में एक पुरानी कहावत भी है की बरगद एक लगाइए पीपल रोपे पांच घर घर नीम लगाइए यही पुरातन सांच विश्वताप मिट जाये होय हर जन मन गदगद धरा पर त्रिदेव है नीम, पीपल और बरगद। किन्तु हम इस सत्यता से दूर भाग रहे हैं कहीं गुलमोहर की तरफ तो कही यूकेलिप्टस की तरफ।
आज चारों तरफ सड़क निर्माण हो रहा है पहाडो को नष्ट कर सडको का चौडी करण हो रहा है सडक किनारे लगे सैकड़ों हजारों लाखों हरे बृक्षों को नष्ट कर ठीक इसी तरह नदियों में असीमित खनन हो रहा है जिसके फलस्वरूप प्रकृति भी अपना रौद्र रूप दिखा रही है जिसमें सभी झुलस रहे हैं सभी प्रभावित हो रहे हैं किंतु इन सबसे सबक आमजनता नहीं ले रही हुक्मरान पहाड़ों में खनन के दौरान हरे बृक्षों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं जबकि वहाँ पर कभी भी बृक्षों को रोपित नहीं किया जाता! सडको के चौडी करण के नाम पर हरे भरे बृक्षों को नष्ट किया जाता है किंतु वहाँ भी रोपित नहीं किया जाता फिर हम स्वच्छ वातावरण की उम्मीद इस प्रकृति से क्यों कर रहे हैं जब हम लोगो ने अपने निजी स्वार्थ के चलते धरती का ही बैलेंस बिगाड़ रहें हैं तो इन विपत्तियों को हमे ही बार बार झेलना पडेगा क्योंकि इसके उत्तरदायी पूर्ण रूप से हमी सब हैं।

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