
आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट–
बाँदा। उत्तर प्रदेश योगी सरकार की साफ स्वच्छ जीरो टालरेंस की नीति को लेकर दो बार भाजपा की योगी सरकार पूर्ण बहुमत से सत्ता मे आई सरकार बनाने और गिराने मे मीडिया की अहम भूमिका होती है। सबसे बडा योगदान सरकार बनाने मे मीडिया का रहा जिसमे इसी मीडिया ने सरकार के जनहित के कार्यों को धरातल पर बखूबी आईने की तरह उतारकर धरातल मे प्रस्तुत किया एवँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पत्रकारों के वर्चस्व एवँ सम्मान हेतु एक बार नही अनेकों बार जनपद मुख्यालयो को निर्देशित कर भी चुके है कि अधिकारी एवँ कर्मचारी तथा पुलिस कर्मचारी पत्रकारों से सम्मान के साथ पेश आये तथा समाचार सँकलित करवाने मे योगदान करे । परन्तु धरातल पर मुख्यमंत्री का आदेश आज हवा हवाई साबित हो रहा है कर्मचारी एवं अधिकारी पत्रकारों को सम्मान देना तो दूर अगर उन्होंने जरा सी भी सच्चाई लिख दिया तो वह मुकदमा और जेल जाने की तैयारी मे रहे देश का चौथा स्तम्भ जिसेआप पत्रकार कहते है जो समाज का आईना कहे जाने वाले होते हैं शायद अपने परिवार की पूरीतरह से देखरेख भी नही कर पाते केवल खबरो को कवरेज करने के लिए ठँड, बरसात, गर्मी,कड़कती धूप में भी अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करते हुये सडकों मे घूमता हुआ दिखाई पड जायेगाऔर आपको शासन प्रशासन तथा धरातल की खबरो से रुबरु कराते हुये समाज को आइना दिखाने का हौसला रखता है।
आज एक समाचार पत्र के ब्यूरो चीफ अंशू गुप्ता ने बताया कि उन्हें आज मुझे पुलिस की अंधी कार्यवाही
पर बडा़ ही दुख हुआ है आज मुझे सच लिखने की इतनी बडी कीमत चुकानी पडी कि और कौई होता तो आत्महत्या कर लेता मेरे ऊपर पुलिस ने मुकदमे पर मुकदमे लिखकर मेरा मनोबल तोडने के लिए इतने मुकदमे लिखे कि मेरे जैसे सीधे सादे व्यक्ति को अपराधी बना दिया तथा कई गंभीर कार्यवाही मेरे खिलाफ की गयी तथा सालो साल मुझे कई यातनाएं झेलनी पडी। एवँ मेरा पूरा कैरियर पुलिस ने बरबाद कर दिया।सच्चाई लिखना कितना बडा गुनाह है ये मै भली भाँति जान चुका हूँ।
अब एक नया मुकदमा पुलिस ने थाना फतेहगँज मे अँशू गुप्ता पत्रकार व शिवविलाश शर्मा के खिलाफ लिखा दिया है । चूंकि एक वीडियो पुलिस की गाडी का वायरल हुआ था जिसमे पुलिस की गाडी से डीजल निकाला जा रहा था वहां पर कोई भी पुलिसकर्मी गाडी के पास वीडियो मे दिखाई नही पड रहा था इस वीडियो की खबर मेरे द्वारा छाप दी गयी पुलिस की इस मामले मे छवि तो खराब हुयी क्योंकि सच्चाई बर्दाश्त करने की ताकत सबमे नही होती और आनन फानन मे एफआईआर दर्ज करा दी ताकि खाकी मे लगा दाग एफआईआर नामक सर्फ से साफ हो जाये । पुलिस ने सँबन्धित पत्रकारों को नोटिस या सूचना देना मुनासिब नही समझा तुरंत आनन फानन मे सभी नियम कानून तथा शासनादेशों को दरकिनार कर सीधे तत्काल एफआईआर दर्ज करा दी। ऐसी स्थिति मै कौन पत्रकार सच्चाई दिखाने के नजदीक जायेगा । अगर ये कहा जाये कि अधिकारी कर्मचारी पत्रकारों को गुलाम बना कर रखना चाहते है तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी क्योंकि कुछ पत्रकार जो अपराधिक छवि वाले है वो अधिकारियों एवँ कर्मचारियों की पहले से ही तलवे चाटने मे डट जाते है तथा अपने काले कारनामों को धडल्ले से अन्जाम भी दे रहे है अधिकारी भी खुश दल्ले भी खुश।
पुलिस की इस कार्यवाही से पत्रकारों में अक्रोश व्याप्त है और शीघ्र ही पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमण्डल द जर्नलिस्ट एशोसिएशन पत्रकार संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष आत्माराम त्रिपाठी के नेतृत्व में पुलिस अधीक्षक बांदा से मिलकर जांच की मांग कर दोषी थानाध्यक्ष के बिरूद्ध कार्यवाही की मांग करेगा